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Radha Krishna Prem Leela

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श्री राधे कृष्ण प्रेमलीला

एक समय की बात है, जब किशोरी जी को यह पता चला कि कृष्ण पूरे गोकल में माखन चोर कहलाते है तो उन्हें बहुत बुरा लगा उन्होंने श्री कृष्ण को चोरी छोड़ देने का बहुत आग्रह किया। पर जब ठाकुर अपनी माँ की नहीं सुनते तो अपनी प्रियतमा की कहा से सुनते। उन्होंने माखन चोरी की अपनी लीला को जारी रखा। एक दिन राधा रानी ठाकुर को सबक सिखाने के लिए उनसे रूठ गयी। अनेक दिन बीत गए पर वो कृष्ण से मिलने नहीं आई। जब श्री कृष्ण उन्हें मनाने गये तो वहां भी उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया। तो अपनी राधा को मनाने के लिए इस लीलाधर को एक लीला सूझी। ब्रज में लील्या गोदने वाली स्त्री को लालिहारण कहा जाता है। तो कृष्ण घूंघट ओढ़ कर एक लालिहारण का भेष बनाकर बरसाने की गलियों में पुकार करते हुए घूमने लगे। जब वो बरसाने, राधा रानी की ऊंची अटरिया के नीचे आये तो आवाज़ देने लगे।

मै दूर गाँव से आई हूँ, देख तुम्हारी ऊंची अटारी,
दीदार की मैं प्यासी, दर्शन दो वृषभानु दुलारी।
हाथ जोड़ विनंती करूँ, अर्ज मान लो हमारी,
आपकी गलिन गुहार करूँ, लील्या गुदवा लो प्यारी।।

जब किशोरी जी ने यह आवाज सुनी तो तुरंत विशाखा सखी को भेजा और उस लालिहारण को बुलाने के लिए कहा। घूंघट में अपने मुँह को छिपाते हुए कृष्ण किशोरी जी के सामने पहुंचे और उनका हाथ पकड़ कर बोले कि कहो सुकमारी तुम्हारे हाथ पे किसका नाम लिखूं। तो किशोरी जी ने उत्तर दिया कि केवल हाथ पर नहीं मुझे तो पूरे श्री अंग पर लील्या गुदवाना है और क्या लिखवाना है, किशोरी जी बता रही हैं।

माथे पे मदन मोहन, पलकों पे पीताम्बर धारी
नासिका पे नटवर, कपोलों पे कृष्ण मुरारी
अधरों पे अच्युत, गर्दन पे गोवर्धन धारी
कानो में केशव, भृकटी पे चार भुजा धारी
छाती पे छलिया, और कमर पे कन्हैया
जंघाओं पे जनार्दन, उदर पे ऊखल बंधैया
गुदाओं पर ग्वाल, नाभि पे नाग नथैया
बाहों पे लिख बनवारी, हथेली पे हलधर के भैया
नखों पे लिख नारायण, पैरों पे जग पालनहारी
चरणों में चोर चित का, मन में मोर मुकट धारी
नैनो में तू गोद दे, नंदनंदन की सूरत प्यारी और
रोम रोम पे लिख दे मेरे, रसिया रास बिहारी

जब ठाकुरजी ने सुना कि राधा अपने रोम रोम पर मेरा नाम लिखवाना चाहती है, तो ख़ुशी से बौरा गए प्रभू उन्हें अपनी सुध न रही, वो भूल गए कि वो एक लालिहारण के वेश में बरसाने के महल में राधा के सामने ही बैठे हैं। वो खड़े होकर जोर जोर से नाचने लगे। उनके इस व्यवहार से किशोरी जी को बड़ा आश्चर्य हुआ की इस लालिहारण को क्या हो गया। और तभी उनका घूंघट गिर गया और ललिता सखी को उनकी सांवरी सूरत का दर्शन हो गया और वो जोर से बोल उठी कि अरे….. ये तो बांके बिहारी ही है। अपने प्रेम के इज़हार पर किशोरी जी बहुत लज्जित हो गयी और अब उनके पास कन्हैया को क्षमा करने के आलावा कोई रास्ता न था। ठाकुरजी भी किशोरी का अपने प्रति अपार प्रेम जानकर गदगद् और भाव विभोर हो गए।

श्री राधे राधे राधे बरसाने वाली राधे।
बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय।

संतजन कहते है कि श्रीकृष्ण की प्राप्ति और मोक्ष दोनों श्री राधाजी की कृपा दृष्टि पर ही निभ्रर हैं। श्री कृष्ण की आराध्या के रूप में श्री राधा रानी की पूजा की जाती है। श्रीकृष्ण भी इनकी नित्य आराधना करते हैं। वृंदावन के सेवाकुंज मंदिर में श्री कृष्ण, श्री राधा की चरण सेवा करते हैं, बेंणी गूंथते हैं और अपनी आराध्या को प्रसन्न करने के हर संभव प्रयास करते हैं। कहा जाता है कि श्री कृष्ण को पाने के लिए श्री राधा को पाना जरूरी है। श्री राधा जी की भक्ति बहुत सरल है। श्री राधा नाम का स्मरण, जप या भजन कर लेने मात्र से प्राणी का निश्चित ही उद्धार हो जाता है l श्री राधा जी को श्रीकृष्ण की आत्मा कहा जाता है ! श्रीकृष्ण के प्राणों से ही इनका प्रादुर्भाव हुआ है। वास्तव में श्रीराधा और श्री कृष्ण एक ही देह हैं। ब्रम्हवैवर्तपुराण में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि श्री राधा के कृपा कटाक्ष के बिना किसी को मेरे प्रेम की उपलब्धि नहीं हो सकती। यह भी कहा जाता है कि श्री राधा की भक्ति करने वाले के पास प्रभु श्री कृष्ण स्वयं चलकर आते हैं। राधानाम ही सब वेदों का सार है , ये जान लेने के बाद और कुछ जानना शेष नहीं रह जाता बस राधे ही एक मात्र जानने योग्य हैं l

राधा-कृष्ण की है पावन प्रेम कहानी ।
◦ प्रेम के इस संसार में राधा-कृष्ण की निशानी ।।
◦ नटखट कृष्ण गोकुल वासियों का प्यारा ।
◦ प्रेम रस की बहा दी संसार में मीठी धारा ।।
◦ गोपियों संग कान्हा ने सुंदर रास रचाया ।
◦ माखन मिश्री लूटकर बहुत ही धूम मचाया ।।
◦ बांसुरी की तान सुनकर राधा दौड़ी चली आती ।
◦ कान्हा संग प्रेम के मीठे क्षण राधा बिताती ।।
◦ मोर पंख सिर पर कान्हा तूने लगाया ।
◦ गोवर्धन पर्वत को कनिष्ठा अंगुली पर उठाया ।।
◦ धन्य हो गया गोकुल की माटी, जहाँ जन्म लिये भगवान ।
◦ जहाँ आज भी सुनाई देती है, मुरली की मधुर तान ।।

एक बार मनिहारी का रूप धारण कर श्रीकृष्ण कंधे पर रंग-बिरंगी चूड़ियों को रखकर बरसाना के लिए रवाना हो लिए। वहां राधा रानी और गोपियों ने सुहागिन होते हुए भी काले रंग की चूड़ियां खरीदी तो कान्हा हैरत में पड़ गए कि आखिर वह सुहाग की निशानी हरी चूड़ियों क्यों नहीं खरीद रहीं। इस जिज्ञासा को शांत करते हुए गोपियों ने कहा कि उन्हें लाल, हरी और पीली रंग की चूड़ियों के बजाए श्याम रंग की चूड़ियां ही भाती हैं। इस प्रसंग के दौरान मनिहारी बने कान्हा ने जब राधाजी को चूड़ियां पहनाना शुरू किया तो उनके स्पर्श से राधारानी को यह समझने में देर न लगी कि मनिहारी रूप में और कोई नहीं उनका कान्हा ही है।

राधारानी और भगवान श्री कृष्ण की ऐसी अनेकों प्रेम लीला है !

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