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Narasee Charitr
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पौराणिक कथा के अनुसार वन्दनाश्री कहती है की नानी बाई का मायरा अटूट श्रद्धा पर आधारित प्रेरणादायी कथा है। कथा के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण का गुणगान किया जाता है। भगवान को यदि सच्चे मन से याद किया जाए तो वे अपने भक्तों की रक्षा करने स्वयं आते हैं। वन्दनाश्री ने कथा का संगीतमय एवं दृश्य के साथ विस्तार से वर्णन करते हुए कहती है कि नानी बाई का मायरा की शुरूआत नरसी भगत के जीवन से हुई।
नरसी जी का जन्म गुजरात के जूनागढ़ में आज से 600 साल पूर्व हुमायूं के शासनकाल में हुआ। नरसी जन्म से ही गूंगे-बहरे थे। वो अपनी दादी के पास रहते थे। उनका एक भाई-भाभी भी थे। भाभी का स्वभाव कड़क था। एक संत की कृपा से नरसी की आवाज गई तथा उनका बहरापन भी ठीक हो गया। नरसी के माता-पिता गांव की एक महामारी का शिकार हो गए। नरसी का विवाह हुआ लेकिन छोटी उम्र में भगवान को प्यारी हो गई। नरसी जी का दूसरा विवाह कराया गया। समय बीतने पर नरसी की लड़की नानीबाई का विवाह अंजार नगर में हुआ। इधर नरसी की भाभी ने उन्हें घर से निकाल दिया।
नरसी श्रीकृष्ण के अटूट भक्त थे। वे उन्हीं की भक्ति में लग गए। भगवान शंकर की कृपा से उन्होंने ठाकुर जी के दर्शन किए। उसके बाद तो नरसी ने सांसारिक मोह त्याग दिया और संत बन गए। उधर नानीबाई ने पुत्री को जन्म दिया और पुत्री विवाह लायक हो गई किंतु नरसी को कोई खबर नहीं थी। लड़की के विवाह पर ननिहाल की तरफ से भात भरने की रस्म के चलते नरसी को सूचित किया गया। नरसी के पास देने को कुछ नहीं था। उसने भाई-बंधु से मदद की गुहार लगाई किंतु मदद तो दूर कोई भी चलने तक को तैयार नहीं हुआ। अंत में टूटी-फूटी बैलगाड़ी लेकर नरसी खुद ही लड़की के ससुराल के लिए निकल पड़े।