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Peacock Nritya Leela
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मयूर नृत्य लीला योगेश्वर भगवान कृष्ण जो कि साक्षात परब्रह्म है, अपने शीश पर मोर के मुकुट को धारण करते हैं मयूर के पंख को मुकुट में लगा हुआ देखकर के राधा रानी और प्रशंसनीय भाव में भगवान कृष्ण से कहती हैं कि हे श्यामसुंदर आप के शीश पर मोर का मुकुट कैसा शोभायमान होता है प्रभु इस संसार में तो अनेका अनेक पक्षी है पर फिर भी आप मयूर का पंख धारण क्यों करते हैं भगवान कृष्ण श्री स्वामिनी राधा जी से कहते हैं कि हे राधे मयूर योगी है अतः मैं कृष्ण मौर के पंख को धारण कर योगेश्वर कृष्ण कहलाता हूं आज राधा रानी अपने मन में धारण करती हैं कि मोर योगी है इसी कारण मेरे कृष्ण योगेश्वर है तो मन में आज प्रतीक्षा के भाव से घेवरवन जो कि बरसाने में है उसमें मोर कुटी है जहां रोज मोर आते हैं वहां चली जाती है और मोरों की प्रतीक्षा करती है परंतु आज तो कोई भी मोर नहीं आता जब कोई मोर नहीं आता तो भूखी प्यासी राधा रानी मोर के दर्शन के लिए व्याकुल हो जाती है श्री राधा रानी को व्याकुल अवस्था में देख श्यामसुंदर लीला रचते हैं और स्वयं ही मयूर का रूप धारण करके राधा रानी को रिझाने लगते हैं राधा रानी की सखियाँ भी मयूरी बन जाती है और प्रारंभ होती है वहां मयूर लीला राधा रानी भाव से समझ जाती है कि यह जो मुझे रीझा रहे है मेरे प्रियतम श्यामसुंदर है बस फिर तो राधा रानी स्वयं भी मयूरी बन जाती है और फिर बरसाने के घेवर वन के मोर कुटी पर प्रस्तुत होती है विहंगम मयूर लीला जिसका दर्शन करने से भगवान कृष्ण की भक्ति प्राप्त होती है मयूर का दर्शन अति शुभ है साक्षात भगवान कृष्ण का आशीष है !