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Braj Vandana (Charkula Dance)
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ब्रज वासियों द्वारा चरकुला नृत्य ( दीप नृत्य )
◦ लंबा घूंघट, सिर पर लकड़ी का चक्र , चक्र के ऊपर 108 दीपकों की जगमग। लोक वाद्ययंत्रों के संगीत पर थिरकते कदम और अचंभित होकर एकटक दृष्टि से देखते दर्शक। चरकुला नृत्य। जितना रोचक उतनी ही रोचक इसके प्रादुभाव की कहानी है।
◦ राधा- कृष्ण की छाप ब्रज के कण- कण में बसी है और इसी छाप का एक अंश ब्रज के इस लोक नृत्य में भी दिखता है।
◦ राधाष्टमी के उत्साह में डूबा ब्रज नृत्य की इस शैली का जन्मदाता भी है। आज भी बरसाना में चल रहे राधाष्टमी उत्सवों में चरकुला नृत्य जगह- जगह कलाकार प्रस्तुत कर रहे हैं। लोकमान्यताओं के अनुसार
◦ वृषभानु दुलारी राधा के जन्म का समाचार जब उनकी नानी ने सुना तो मारे खुशी के आंगन में रखे रथ के पहिये पर जलते हुए दीप सजाए और सिर पर रखकर पूरे गांवभर में घूमी थीं। घर- घर जाकर राधे रानी के जन्म की खुशी साझा की और नृत्य करने लगीं। तभी से इस नृत्य को चरकुला नृत्य का नाम मिल गया। वहीं दूसरी मान्यता के अनुसार होली के तीसरे दिन राधा जी की नानी ने इस नृत्य को किया था। वहीं कुछ पुस्तकों में उल्लेख है कि भगवान श्री कृष्ण ने जब गोवर्धन पर्वत उठाकर इंद्र देव का मद चूर किया तो ब्रजवासियों ने चरकुला नृत्य किया था।
◦ ब्रज की गलियों से शुरू हुआ यह नृत्य आज विदेशों में भी अपनी खास पहचान बना चुका है। कई नृत्यकारों को चरकुला नृत्य ने रोजगार भी दिया है तो उनकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान भी बनाई है। ब्रज की स्त्रियों का है प्रमुख नृत्य:
◦ वन्दनाश्री के अनुसार ब्रज में हर त्योहार पर स्त्रियां चरकुला नृत्य करती हैं। अधिकांशत: ब्राह्मण समुदाय की स्त्रियों का यह प्रमुख नृत्य है। एकल और समूह में होने वाला यह नृत्य पूरी तरह से संतुलन पर आधारित है। चरकुला में लोक वाद्य यंत्र जैसे ढोलक, नगाड़ा, हारमोनियम, बांसुरी, थाली, मंजीरा, करताल आदि प्रयोग होते हैं। ऊंचा लहंगा और कढ़ाईदार ब्लॉउज इसकी पोशाक होती है। नाक तक घूंघट इस नृत्य को परंपरा और सभ्यता से जोड़ता है। बिना अभ्यास और प्रशिक्षण के नहीं हो सकता करीब 25 वर्ष पहले उन्होंने मंच पर चरकुला की प्रस्तुतियां शुरू करवाई थीं। चरकुला मेहनतभरा और मुश्किल नृत्य है। इसे बिना प्रशिक्षण और सख्त अभ्यास के करना नामुमकिन है। जलते हुए दीपकों को थिरकते कदमों के साथ सिर पर चक्र पर रखना और लगातार नृत्य करना आसान नहीं होता। चरकुला नृत्य की विशेषता होती है कि इसके स्टेप आरामदायक और कम होते हैं। देश विदेश में ब्रज की गोपी के नाम से प्रसिद्ध और ब्रज रत्न सम्मान से सम्मानित वन्दनाश्री बताती हैं छोटी सी उम्र से ही गायन और नृत्य में रुचि थी। लोकनृत्यों में राधा का किरदार निभाती थीं। जब नृत्य करते हुए गायन करते देखा तो ब्रज की ब्रज की गोपी का नाम दे दिया। इसके बाद थोड़ी समझदार हुई तो ब्रज के कलाकारों को चरकुला नृत्य करते देखा। तब से इस नृत्य के प्रति आकर्षण मन ऐसा आया कि 15 वर्ष की उम्र में करीब 45 किलो वजनी चरकुला सिर पर रखकर नृत्य किया। वर्तमान में शास्त्रीय गायन और नृत्य की प्रसिद्ध कलाकार हैं।